Friday, September 7, 2018

जलालुद्दीन हक्क़ानी: अमरीका की नज़रों में हीरो से विलेन तक

किस्तान के साथ लगती सीमा पर है अफ़ग़ानिस्तान का ख़ूबसूरत पहाड़ी प्रांत- पक्तिया. छोटी-छोटी घाटियों वाले इसे क़बायली इलाक़े में ज़्यादातर पश्तून रहते हैं. सर्दियों में ये वादियां बर्फ़ की सफ़ेद चादर से ढक जाती हैं.
मगर ये प्रांत अपनी ख़ूबसूरती से ज़्यादा दुनिया के मोस्ट वॉन्टेड चरमपंथियों में शुमार रहे जलालुद्दीन हक्कानी की वजह से पहचाना जाता है, जिनका यहां जन्म हुआ था. जदरान क़बीले से संबंध रखने वाले जलालुद्दीन हक्कानी एक समय अमरीका और उसके सहयोगी देशों के लिए हीरो थे, मगर बाद में विलेन बन गए.में जब सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया, तब हक्क़ानी एक ऐसे मुजाहिदीन के तौर पर उभरे जिन्होंने सोवियत सेनाओं की नाक में दम कर दिया. अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए उस समय बड़ी खुशी से पाकिस्तानी सेना के जरिए जलालुद्दीन हक्कानी और उनके जैसे मुजाहिदीनों को आर्थिक और सामरिक मदद दे रही थी.
पाकिस्तान में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सबाहत ज़कारिया बताती हैं कि सीआईए के लिए हक्कानी काफी महत्व रखते थे.
वह बताती हैं, "सोवियत हमले के समय जलालुद्दीन हक्कानी जाने-माने मुजाहिदीन नेता थे. उस समय उनकी अपनी अलग पहचान थी."
अफ़ग़ानिस्तान में जब एक तरफ़ तालिबान था और दूसरी तरफ अल कायदा, तब भी हक्कानी नेटवर्क का अपना अलग अस्तित्व रहा. यहां तक कि वह तालिबान की सरकार में मंत्री भी रहे मगर अपने संगठन को अलग बनाए रखा.
वरिष्ठ पत्रकार सबाहत ज़कारिया बताती हैं कि जलालुद्दीन हक्कानी तालिबान के साथ होकर भी उससे दूर रहे क्योंकि इसी में उनका फ़ायदा था. इसीलिए उन्होंने संगठन का तालिबान में विलय नहीं किया. ह बताती हैं, "हक्क़ानी नेटवर्क दरअसल पहले से ही मौजूद था. वह एक फैमिली नेटवर्क है. उत्तरी वज़ीरीस्तान और जहां से वो मूलत: हैं, वहां पर ऑपरेट करते हैं. नौशेरा के जिस मदरसे से उन्होंने तालीम पाई थी, उसे मुजाहिदों का अड्डा समझा जाता है. तालिबान में मिलने का उन्हें कोई फ़ायदा नहीं होता क्योंकि उनके पास अपनी ताक़त थी. इसीलिए उन्होंने तालिबान सरकार में कैबिनेट मंत्रालय लिया था और सहयोग करते रहे थे."सितंबर, 2001... अमरीका के ट्विन टावर पर हुए हमले के लिए अमरीका ने अल कायदा को जिम्मेदार बताते हुए अफगानिस्तान में अभियान चलाने का एलान किया. इसी दौरान जलालुद्दीन हक्कानी तालिबान के शीर्ष नेता के तौर पर आख़िरी बार पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर आए मगर इस्लामाबाद से वह लापता हो गए.
कुछ महीनों बाद वह वज़ीरिस्तान में सामने आए. यहीं से अब उन्होंने कुछ समय पहले तक अपने सहयोगी रहे अमरीका के खिलाफ अभियान का एलान किया जो अब अफ़ग़ानिस्तान पर हमले कर रहा था.
वरिष्ठ पत्रकार अहमद राशिद बताते हैं कि हक्कानी का अल क़ायदा का साथ देने का फ़ैसला बहुत ग़लत था.
वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि ये उनके जीवन की सबसे बड़ी ग़लती थी. वह तालिबान सरकार में मंत्री थे मगर तालिबान का अपमान करते थे. फिर 9/11 हुआ और सीआईए ने उनसे किनारा कर लिया. फिर लादेन ने भी उनसे किनारा कर लिया था. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने अल क़ायदा में शामिल होने का फैसला किया था."
अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी अभियान ने अल कायदा, तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को एक-दूसरे के क़रीब लाकर रख दिया. इसी के साथ अफगानिस्तान में अमरीका के लिए महत्वपूर्ण सहयोगी रहे हक्कानी मोस्ट वॉन्टेड चरमपंथी बन गए.
"ऐसे में सीआईए और आईएसआई ने मिलकर उन्हें फंड किया, मिलिट्री ट्रेनिंग दी और सोवियत स्ट्रैटिजी में उन्हें एक महत्वपूर्ण टूल समझा."
सीआईए और आईएसआई की मदद से हक्कानी नेटवर्क अफ़ग़ानिस्तान में अनुभवी और दक्ष लड़ाकों का एक समूह बन गया था. मगर 1990 के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ का विघटन और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का उदय हुआ, अमरीका और उसके सहयोगियों ने हक्कानी से दूरी बनाना शुरू कर दिया.
मगर बावजूद इसके हक्कानी नेटवर्क का प्रभाव कम नहीं हुआ. कई बार जलालुद्दीन हक्कानी से मिल चुके पत्रकार अहमद राशिद बताते हैं कि उन्होंने फंड जुटाने के लिए और भी तरीके इजाद कर लिए थे.
वह बताते हैं, "वह कमाल के आदमी थे. मतलब जिस समय अफ़गान मुजाहिदीन सोवियत हमले के ख़िलाफ लड़ रहे थे तब वह अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन और सीआईए की आंखों के तारे थे. वह अपने आदमियों के बीच भी लोकप्रिय थे. उन्होंने खूब पैसा बनाया. ड्रग्स का ख़ूब कारोबार किया. ड्रग्स के जरिए अपनी गतिविधियों के लिए पैसा जुटाया. वह पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसियों और सेना के भी करीब थे और उनके लिए कई काम किए.

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